Kargil Vijay Diwas (कारगिल विजय दिवस): शौर्य, बलिदान और विजय की एक विस्तृत गाथा
भारत के गौरवशाली इतिहास में 26 जुलाई का दिन एक विशेष स्थान रखता है। यह वह पावन तिथि है जब पूरा राष्ट्र (Kargil Vijay Diwas) ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में उन अमर बलिदानों को याद करता है, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में अपनी जान की बाजी लगाकर देश की सीमाओं की रक्षा की। ‘कारगिल विजय दिवस’ केवल एक वार्षिक स्मरणोत्सव नहीं, बल्कि भारतीय सेना के अदम्य साहस, अद्वितीय शौर्य और राष्ट्र के प्रति सर्वोच्च समर्पण की एक जीवंत गाथा है। यह हमें उस समय की याद दिलाता है जब हमारे जवानों ने असंभव को संभव कर दिखाया और दुर्गम परिस्थितियों में भी दुश्मन पर विजय प्राप्त की।

युद्ध की पृष्ठभूमि और पाकिस्तान का विश्वासघात
1999 की शुरुआत में, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में सुधार की उम्मीद जगी थी। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फरवरी 1999 में लाहौर की ऐतिहासिक बस यात्रा की थी, जहाँ उन्होंने शांति और सद्भाव का संदेश दिया था। लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें दोनों देशों ने परमाणु हथियारों के उपयोग से बचने और द्विपक्षीय मुद्दों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का संकल्प लिया। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि दशकों पुरानी शत्रुता अब समाप्त हो सकती है।
लेकिन, पर्दे के पीछे पाकिस्तान की सेना, विशेषकर उसके तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, एक नापाक साजिश रच रहे थे। उन्होंने ‘ऑपरेशन बद्र’ नामक एक गुप्त योजना को अंजाम देना शुरू कर दिया था। इस योजना का उद्देश्य नियंत्रण रेखा (LoC) के पार, विशेषकर कारगिल, द्रास और बटालिक सेक्टर की ऊंची, दुर्गम चोटियों पर घुसपैठ करना था। इन चोटियों पर सर्दियों में भारतीय सेना की चौकियाँ खाली रहती थीं, क्योंकि अत्यधिक ठंड और बर्फबारी के कारण वहाँ रहना लगभग असंभव होता था।
पाकिस्तान का इरादा इन रणनीतिक ऊँचाइयों पर कब्जा करके श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-1A) को बाधित करना था, जो सियाचिन ग्लेशियर और लद्दाख में भारतीय सेना की आपूर्ति का मुख्य मार्ग है। उनका मानना था कि इससे भारत पर कश्मीर मुद्दे पर बातचीत के लिए दबाव पड़ेगा और वे कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक “परमाणु फ्लैशपॉइंट” के रूप में पेश कर सकेंगे। यह लाहौर घोषणा का सीधा उल्लंघन और भारत की पीठ में छुरा घोंपने जैसा था।
घुसपैठ का पता लगना और प्रारंभिक प्रतिक्रिया
मई 1999 की शुरुआत में, स्थानीय चरवाहों ने कारगिल क्षेत्र में असामान्य गतिविधियाँ देखीं और भारतीय सेना को इसकी सूचना दी। 3 मई को, ताशी नाम के एक चरवाहे ने बटालिक सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा। प्रारंभिक रूप से, भारतीय सेना ने इसे केवल कुछ आतंकवादियों की घुसपैठ माना। लेकिन, जब 5 मई को कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में एक गश्ती दल को भेजा गया, तो उन्हें भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा और कैप्टन कालिया सहित पाँच भारतीय सैनिक पकड़े गए, जिनकी बाद में बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी गई। इसके बाद, अन्य गश्ती दलों ने भी इसी तरह के प्रतिरोध का सामना किया, जिससे भारतीय सेना को घुसपैठ के पैमाने की गंभीरता का एहसास हुआ।
यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई सामान्य आतंकवादी घुसपैठ नहीं थी, बल्कि पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक और अर्धसैनिक बल भारी हथियारों के साथ भारतीय क्षेत्र में गहरे तक घुस आए थे। उन्होंने बंकर बना लिए थे और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोटियों पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। भारतीय सेना के लिए यह एक चौंकाने वाली स्थिति थी, क्योंकि उन्हें अचानक एक ऐसे युद्ध का सामना करना पड़ा था जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी।
ऑपरेशन विजय ( Operation Vijay ) का शुभारंभ
भारतीय नेतृत्व ने तुरंत जवाबी कार्रवाई का निर्णय लिया। 26 मई 1999 को, भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ का शुभारंभ किया। इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारतीय क्षेत्र से खदेड़ना और सभी कब्जे वाली चोटियों को पुनः प्राप्त करना था। यह एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि भारतीय सैनिकों को दुश्मन पर हमला करने के लिए ऊपर की ओर चढ़ना था, जबकि दुश्मन ऊँची चोटियों पर मजबूत बंकरों में बैठा था और नीचे आते हुए भारतीय सैनिकों पर आसानी से गोलीबारी कर सकता था। इसके अलावा, कारगिल क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियाँ भी अत्यंत कठिन थीं – अत्यधिक ऊँचाई (14,000 से 18,000 फीट), भीषण ठंड, पतली हवा और दुर्गम चट्टानी इलाके।
ऑपरेशन सफेद सागर ( Operation Safed Sagar ) : वायुसेना का योगदान
ऑपरेशन विजय के साथ ही, भारतीय वायुसेना ने भी ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के तहत अपनी भूमिका निभाई। वायुसेना के लड़ाकू विमानों (मिग-21, मिग-27, मिराज-2000) ने दुश्मन के ठिकानों पर हवाई हमले किए। हालाँकि, ऊँचाई पर उड़ान भरना और दुश्मन के छोटे, छिपे हुए बंकरों को निशाना बनाना एक बड़ी चुनौती थी। शुरुआती दिनों में, भारतीय वायुसेना को कुछ नुकसान भी हुआ, जब एक मिग-27 और एक मिग-21 विमान दुश्मन की मिसाइलों का शिकार हुए।
स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता जैसे वायुसेना के जवान भी इस दौरान शहीद हुए या पकड़े गए। लेकिन, वायुसेना ने जल्द ही अपनी रणनीति में बदलाव किया और लेजर-गाइडेड बमों का उपयोग करके दुश्मन के बंकरों को सफलतापूर्वक नष्ट करना शुरू कर दिया। वायुसेना की सटीक बमबारी ने दुश्मन की आपूर्ति लाइनों को बाधित करने और उनके मनोबल को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रमुख युद्ध और भारतीय सेना का शौर्य
कारगिल युद्ध ( Kargil War ) कई भीषण लड़ाइयों का एक सिलसिला था, जहाँ भारतीय सैनिकों ने अद्वितीय साहस और बलिदान का प्रदर्शन किया। कुछ प्रमुख युद्धस्थल और उनमें भारतीय वीरों की गाथाएँ इस प्रकार हैं:
- तोलोलिंग की लड़ाई : द्रास सेक्टर में स्थित तोलोलिंग चोटी ( Kargil War ) रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह NH-1A पर हावी थी। इस चोटी पर कब्जा करने के लिए भारतीय सेना को कई बार भीषण हमले करने पड़े। 2 राजपूताना राइफल्स और 18 ग्रेनेडियर्स जैसी इकाइयों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। कैप्टन हनीफुद्दीन जैसे कई जवान इस लड़ाई में शहीद हुए। अंततः, 13 जून 1999 को, भारतीय सेना ने तोलोलिंग पर कब्जा कर लिया। यह विजय भारतीय सेना के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाली थी और इसने आगे के अभियानों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
- टाइगर हिल की लड़ाई: टाइगर हिल ( Kargil War ) कारगिल युद्ध का सबसे प्रतिष्ठित युद्धस्थल बन गया। 16,000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर स्थित यह चोटी NH-1A पर पूर्ण नियंत्रण रखती थी। इस पर कब्जा करना अत्यंत कठिन था। 18 ग्रेनेडियर्स और 8 सिख रेजिमेंट के जवानों ने भीषण गोलीबारी और तोपखाने के हमलों के बीच चट्टानी ढलानों पर चढ़ाई की। कैप्टन अनुज नय्यर और कैप्टन सचिन निम्बालकर जैसे वीरों ने इस लड़ाई में अपने प्राणों का बलिदान दिया। 3 जुलाई 1999 को, भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहराया, जो युद्ध में भारत की निर्णायक बढ़त का प्रतीक बन गया।
- प्वाइंट 4875 (बत्रा टॉप): द्रास सेक्टर में प्वाइंट 4875 कारगिल युद्ध की ( Kargil War ) एक और महत्वपूर्ण चोटी थी। इस चोटी को पुनः प्राप्त करने का कार्य 13 जम्मू और कश्मीर राइफल्स को सौंपा गया था। कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपने प्रसिद्ध नारे “ये दिल मांगे मोर!” के साथ इस चोटी पर चढ़ाई की और दुश्मन के कई बंकरों को नष्ट किया। उन्होंने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन के कई सैनिकों को मार गिराया। हालाँकि, 7 जुलाई 1999 को, अपने साथी को बचाते हुए वे दुश्मन की गोली का शिकार हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए। उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इस चोटी को अब “बत्रा टॉप” के नाम से जाना जाता है।
- बटालिक सेक्टर की लड़ाई: बटालिक सेक्टर में भी कई महत्वपूर्ण चोटियों पर भीषण लड़ाई हुई, जैसे कि जुबार, कुकरथांग, और खालुबार। 1/11 गोरखा राइफल्स, 17 जाट रेजिमेंट और बिहार रेजिमेंट के जवानों ने यहाँ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, जो 1/11 गोरखा राइफल्स में थे, ने जुबार टॉप पर दुश्मन के बंकरों पर हमला करते हुए अदम्य साहस दिखाया। वे गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद लड़ते रहे और अंततः वीरगति को प्राप्त हुए। उन्हें भी मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
- अन्य महत्वपूर्ण चोटियाँ: प्वाइंट 5140, प्वाइंट 5100, प्वाइंट 5060, और अन्य कई चोटियों पर भी भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए अथक प्रयास किए। हर चोटी पर एक नई चुनौती और एक नई शौर्य गाथा थी।
लॉजिस्टिक्स और तोपखाने का महत्व
कारगिल युद्ध ( Kargil War ) में लॉजिस्टिक्स और तोपखाने ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अत्यधिक ऊँचाई और दुर्गम इलाकों में सैनिकों और हथियारों की आपूर्ति करना एक बड़ी चुनौती थी। भारतीय सेना ने हेलीकॉप्टरों और खच्चरों का उपयोग करके आपूर्ति लाइनों को बनाए रखा। बोफोर्स तोपों ने युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई। इन तोपों ने दुश्मन के बंकरों पर सटीक और विनाशकारी हमला किया, जिससे भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने में मदद मिली। तोपखाने की भारी गोलाबारी ने दुश्मन के मनोबल को तोड़ दिया और उन्हें अपनी स्थिति छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और पाकिस्तान पर दबाव
जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की घुसपैठ और विश्वासघात के बारे में अवगत कराया। भारत ने स्पष्ट किया कि यह नियंत्रण रेखा का उल्लंघन था और पाकिस्तान एक आक्रामक देश के रूप में कार्य कर रहा था। अमेरिका सहित कई प्रमुख देशों ने पाकिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का आह्वान किया। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर भारी दबाव डाला, जिससे अंततः पाकिस्तान को अपनी सेना वापस बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय समर्थन ने भारत की स्थिति को मजबूत किया और पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया।
विजय की घोषणा और मानवीय लागत
लगभग दो महीने तक चले इस भीषण युद्ध के बाद, भारतीय सेना ने 26 जुलाई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की पूर्ण सफलता की घोषणा की। भारतीय तिरंगा एक बार फिर कारगिल की सभी चोटियों पर शान से लहरा रहा था। यह भारत की एक ऐतिहासिक और निर्णायक विजय थी।
हालाँकि, इस विजय की एक भारी कीमत चुकानी पड़ी। कारगिल युद्ध ( Kargil War ) में भारत ने 527 से अधिक वीर सैनिकों को खो दिया, जबकि 1363 से अधिक घायल हुए। प्रत्येक शहीद का बलिदान भारत माता के प्रति उनके अटूट प्रेम और समर्पण का प्रमाण है। कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, राइफलमैन संजय कुमार और ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव जैसे परमवीर चक्र विजेताओं के अलावा, कैप्टन सौरभ कालिया, कैप्टन विजयंत थापर, कैप्टन एन. केंगुरूस, मेजर राजेश अधिकारी, मेजर विवेक गुप्ता जैसे कई अन्य वीरों ने भी अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया।
Kargil Vijay Diwas ( कारगिल विजय दिवस ): विरासत और सीख
‘कारगिल विजय दिवस’ ( Kargil Vijay Diwas ) हमें केवल एक सैन्य जीत की याद नहीं दिलाता, बल्कि यह हमें कई महत्वपूर्ण सबक भी सिखाता है:
- अदम्य साहस और बलिदान: यह दिवस हमें भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और राष्ट्र के प्रति उनके सर्वोच्च बलिदान की याद दिलाता है। उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य का पालन किया और देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी।
- राष्ट्रीय एकता: कारगिल युद्ध ने पूरे देश को एकजुट कर दिया। जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र की परवाह किए बिना, हर भारतीय ने अपनी सेना का समर्थन किया और राष्ट्रीय गौरव की भावना से ओत-प्रोत हो गया।
- सैन्य सुधार: युद्ध के बाद, भारत ने अपनी सैन्य खुफिया जानकारी, सीमा सुरक्षा और उच्च-ऊंचाई वाले युद्ध के लिए तैयारियों में महत्वपूर्ण सुधार किए। कारगिल समीक्षा समिति (Kargil Review Committee) की रिपोर्ट ने रक्षा तंत्र में कई संरचनात्मक और परिचालन परिवर्तनों की सिफारिश की, जिन्हें लागू किया गया।
- पाकिस्तान का विश्वासघात: इस युद्ध ने पाकिस्तान के दोहरे चरित्र और उसकी विश्वसनीयता की कमी को उजागर किया, जिसने शांति वार्ता के दौरान भी पीठ में छुरा घोंपा।
- साहस की स्थायी प्रेरणा: ‘कारगिल विजय दिवस’ ( Kargil Vijay Diwas ) भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह उन्हें सिखाता है कि स्वतंत्रता और संप्रभुता कितनी अनमोल है और इसकी रक्षा के लिए कितना त्याग आवश्यक है।
निष्कर्ष
Kargil Vijay Diwas ‘कारगिल विजय दिवस’ भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह हमें उन वीर सपूतों की याद दिलाता है जिन्होंने अपने खून से विजय की गाथा लिखी। यह दिवस हमें उन माताओं, पिताओं, पत्नियों और बच्चों के बलिदान की भी याद दिलाता है जिन्होंने अपने प्रियजनों को देश के लिए न्योछावर कर दिया।
यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम अपने सैनिकों और उनके परिवारों का सम्मान करें, उनके बलिदान को कभी न भूलें, और उनके शौर्य को हमेशा याद रखें। ‘कारगिल विजय दिवस’ ( Kargil Vijay Diwas ) भारतीय सेना के शौर्य, राष्ट्र के प्रति उनके अटूट समर्पण और भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए उसकी दृढ़ प्रतिबद्धता का एक शाश्वत प्रतीक है। इस पावन अवसर पर, हम सभी को उन शहीदों को नमन करना चाहिए जिन्होंने हमें सुरक्षित रखने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। जय हिंद!
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FAQ
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) कब हुआ था?
उत्तर: कारगिल युद्ध मई से जुलाई 1999 के बीच हुआ था।
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) किन देशों के बीच लड़ा गया था?
उत्तर: यह युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था।
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: मुख्य कारण पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों का नियंत्रण रेखा (LoC) पार करके भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करना था।
प्रश्न: युद्ध किस क्षेत्र में लड़ा गया था?
उत्तर: यह युद्ध मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में लड़ा गया था, विशेष रूप से द्रास, काकसर, बटालिक और मुश्कोह घाटियों में।
प्रश्न: भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन का नाम क्या था?
उत्तर: भारतीय सेना द्वारा चलाए गए ऑपरेशन का नाम “ऑपरेशन विजय” था।
प्रश्न: Operation Vijay – ऑपरेशन विजय का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: ऑपरेशन विजय का मुख्य उद्देश्य घुसपैठियों को भारतीय क्षेत्र से खदेड़ना और नियंत्रण रेखा पर पूर्व यथास्थिति बहाल करना था।
प्रश्न: युद्ध में पाकिस्तान की ओर से कौन शामिल थे?
उत्तर: पाकिस्तान की ओर से पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक और विभिन्न आतंकवादी संगठन शामिल थे।
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान भारत के प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर: कारगिल युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे।
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर: कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ थे।
प्रश्न: युद्ध कितने दिनों तक चला था?
उत्तर: यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला था।
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) में भारत को क्या सफलता मिली?
उत्तर: भारत ने घुसपैठियों को सफलतापूर्वक खदेड़ दिया और अपने सभी क्षेत्रों पर फिर से नियंत्रण कर लिया।
प्रश्न: कारगिल युद्ध ( Kargil War ) में भारत को कितने सैनिक खोने पड़े?
उत्तर: आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत ने इस युद्ध में 500 से अधिक सैनिक खो दिए थे।
प्रश्न: पाकिस्तान को युद्ध में कितनी क्षति हुई?
उत्तर: पाकिस्तान को भी काफी नुकसान हुआ था, हालांकि पाकिस्तान ने अपने हताहतों की संख्या का सटीक आंकड़ा जारी नहीं किया।
प्रश्न: कारगिल युद्ध ( Kargil War ) में महत्वपूर्ण चोटियाँ कौन सी थीं जिन पर कब्जा किया गया था?
उत्तर: टाइगर हिल और तोलोलिंग जैसी चोटियाँ युद्ध में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थीं।
प्रश्न: कारगिल युद्ध ( Kargil War ) को “ऑपरेशन विजय” क्यों कहा गया?
उत्तर: इसे “ऑपरेशन विजय” (विजय का अर्थ जीत) कहा गया क्योंकि इसका उद्देश्य घुसपैठियों पर विजय प्राप्त करना था।
प्रश्न: इस युद्ध से भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर क्या असर पड़ा?
उत्तर: इस युद्ध ने दोनों देशों के संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया।
प्रश्न: क्या इस युद्ध में वायुसेना का भी इस्तेमाल किया गया था?
उत्तर: हाँ, भारतीय वायुसेना ने भी “ऑपरेशन सफेद सागर” के तहत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
प्रश्न: कारगिल विजय दिवस ( Kargil Vijay Diwas ) कब मनाया जाता है?
उत्तर: प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया जाता है।
प्रश्न: कारगिल युद्ध (Kargil War) ने भारतीय सेना को क्या सिखाया?
उत्तर: इस युद्ध ने उच्च ऊंचाई वाले युद्ध और पर्वतीय क्षेत्रों में सैन्य अभियानों के लिए भारतीय सेना की तैयारी और क्षमता को मजबूत किया।
प्रश्न: क्या कारगिल युद्ध (Kargil War ) के बाद कोई शांति समझौता हुआ?
उत्तर: युद्ध के बाद कोई औपचारिक शांति समझौता नहीं हुआ, लेकिन नियंत्रण रेखा पर पूर्व यथास्थिति बहाल हो गई।



