सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty 1960) एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण जल-वितरण समझौता है, जिसे 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित किया गया था। इस संधि का उद्देश्य, सिंधु नदी प्रणाली — जिसमें सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ शामिल हैं — के जल के न्यायसंगत उपयोग और नियंत्रण को लेकर दोनों देशों के बीच सहयोग स्थापित करना था। विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई यह संधि दशकों तक भारत-पाकिस्तान के बीच जल शांति का आधार बनी रही, हालांकि समय-समय पर इसमें विवाद और तनाव की स्थितियाँ भी उत्पन्न होती रही हैं।
संधि (Indus Water Treaty) के प्रमुख बिंदु
इस समझौते के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली की छह प्रमुख नदियों को दो भागों में बांटा गया:
-
सिंधु जल संधि के अंतर्गत, पाकिस्तान को सिंधु नदी प्रणाली के कुल जल प्रवाह का लगभग 80% हिस्सा प्राप्त होता है।
संधि के अनुसार जल का बंटवारा:
-
पश्चिमी नदियाँ – सिंधु, झेलम और चिनाब
-
ये नदियाँ पाकिस्तान को आवंटित की गई हैं।
-
इनसे सालाना लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी प्रवाहित होता है।
-
पाकिस्तान को इन नदियों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, जबकि भारत को केवल सीमित उपयोग (जैसे सिंचाई, रन-ऑफ-रिवर पनबिजली) की अनुमति है।
-
-
पूर्वी नदियाँ – रावी, ब्यास और सतलुज
-
इन नदियों का जल भारत को आवंटित किया गया है।
-
इनका कुल वार्षिक जल प्रवाह लगभग 33 MAF है, जिसे भारत अपने उपयोग में लाता है।
-
कुल जल प्रवाह:
-
सिंधु नदी प्रणाली में कुल मिलाकर सालाना लगभग 168 MAF जल प्रवाहित होता है।
-
इसमें से लगभग 135 MAF (यानी करीब 80%) पानी पाकिस्तान को मिलता है।
-
शेष 33 MAF (लगभग 20%) जल भारत को उपयोग हेतु प्राप्त होता है।
-
संधि के तहत एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) का गठन किया गया, जिसमें भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। यह आयोग संधि के क्रियान्वयन, तकनीकी मसलों और संभावित विवादों को सुलझाने का कार्य करता है।
वर्तमान संदर्भ में संधि की स्थिति
इस वर्ष सिंधु जल संधि एक बार फिर राजनीतिक और कूटनीतिक विवादों का केंद्र बन गई है। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की मृत्यु हुई, के बाद भारत ने इस संधि को “स्थगित” करने का निर्णय लिया। यह निर्णय, पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद को कथित रूप से समर्थन देने के विरोध में लिया गया है, और इसे एक रणनीतिक दबाव के रूप में देखा जा रहा है।
भारत के इस कदम के प्रतिउत्तर में, पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कानूनी आपत्ति दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पाकिस्तान का तर्क है कि सिंधु जल संधि को एकतरफा न तो निलंबित किया जा सकता है और न ही रोका जा सकता है, क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय जल कानूनों और समझौतों के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
विषय विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह फैसला भले ही राजनीतिक और सुरक्षा उद्देश्यों से प्रेरित हो, लेकिन इससे दोनों देशों के बीच जल सहयोग की मौजूदा संरचना और विश्वास को नुकसान पहुँच सकता है। यदि तनाव बढ़ा, तो इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया के जल संसाधन प्रबंधन पर पड़ सकता है।
संधि का वैश्विक महत्व
सिंधु जल संधि को आज भी दुनिया के सबसे सफल और टिकाऊ जल-बंटवारा समझौतों में गिना जाता है। इसने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धों और राजनीतिक तनाव के बावजूद जल विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह इस बात का उदाहरण है कि जटिल राजनीतिक परिस्थितियों में भी सहयोग और संवाद से जल जैसे संवेदनशील संसाधनों का प्रबंधन संभव है।
भविष्य की दिशा
सिंधु जल संधि के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। भारत द्वारा “स्थगन” का निर्णय एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसके दीर्घकालिक कूटनीतिक और पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या और जल की मांग को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि संधि के प्रावधानों की पुनः समीक्षा की जाए।
दोनों देशों के लिए यह समय है कि वे विवाद नहीं, संवाद की राह चुनें और जल संसाधनों के टिकाऊ और न्यायसंगत उपयोग के लिए एक नवीन रणनीति तैयार करें।